मेरी बैस्टी मेरी डायरी# डायरी लेखन प्रतियोगिता -17-Dec-2021
20 दिसम्बर
शाम के पांच..
2021, फरवरी मेरे लेखन सफर के लिए बहुत ही संघर्ष पूर्ण माह रहा। प्रतियोगिताओं में भाग लेने का जोश था और उस समय प्रतिलिपि पर होने वाली सभी प्रतियोगिताओं में भाग लिया ,पिया बसंती थे, रेडियो दिवस के साथ साल भर चलने वाली डायरी प्रतियोगिता में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया। देर रात तक जग कर लिखा करती थी, पाठकों को पसंद आ रही थी मेरी कहानियां और डायरी के पन्ने पर परिणाम में मेरा नाम नहीं आया था फरवरी की मेरी लेखनी में।पर याद है जनवरी में हुई प्रतियोगिता काई पो छे का परिणाम जब फरवरी में आया उसमें मेरा एक लेख चयनित हुआ। जिसमें मैंने थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ, चेतन भगत की लिखी नोवेल जिस पर फिल्म काई पो छे बनी है और जिसका अर्थ है मैंने पतंग काट डाली।ये नोवेल मैंने कई बार पढ़ी है और मूवी भी देखी है, सुशांत सिंह राजपूत ने काम किया है इसमें। बहुत ही खुशी का दिन था वो मेरे लिए,इतने बड़े मंच पर जहां ढ़ाई लाख लेखक हैं और हज़ारों की संख्या में प्रतियोगिता में भाग लेते हैं वहां मेरा नाम आना मेरे और मेरे परिवार के लिए बहुत खुशी की बात थी।
मैं पूरे मन से अपने लेखन सफर में चल पड़ी थी।
फरवरी में ही इनको जरूरी काम से दिल्ली जाना था,मन तो मेरा भी पूरा था बल्कि विश्वास था कि ये मुझे अपने साथ ले ही जाएंगे। लेकिन उस समय दोनों बेटों की परिक्षाएं नजदीक थी,बड़े के तो प्री बोर्ड चल रहे थे,ऐसे में दोनों एक साथ कैसे जाते।पहली बार मेरे बिना ये करीब पन्द्रह दिन अपने ससुराल में थे और मैं इनके बिना अपने ससुराल में। बहुत कठिन समय था ये फरवरी का महीना हमारे लिए।
सरस्वती पूजा के समय बच्चे बहुत उत्साहित थे,इस बार पहली बार मूर्ति पूजन किया था हमने और सारा प्रसाद घर पर ही बनाया था।
सरस्वती पूजा के अगले दिन ही बड़ी बिटिया (जेठ जी की बेटी) की तबियत अचानक खराब हो गई तो वो मूर्ति विसर्जन के लिए भी ना था सकी।पहले तो लगा कि शायद मच्छर या किसी कीड़े ने काटा था या फिर उस कपड़े के कारण जो उसने पूजा के दिन पहना था... पूरे शरीर पर दाने और बुखार हो गया था,शाम को जब डॉक्टर को दिखाया तो पता चला मिजल्स यानि माता निकल गई है। बहुत ही मुश्किल थे वो पन्द्रह दिन।जब उसे दर्द और जलन से चीखते रोते देखती मन बहुत दुखी होता।
समय का पहिया चलता ही रहता है,कितना भी कठिन समय आए आखिर गुजर ही जाता है।
पन्द्रह दिन बाद जब ये दिल्ली से वापस आए तब जाकर थोड़ी घबराहट कम हुई मेरी।वैसे सच बताऊं बैस्टी, उतने दिन मन डरा हुआ था एक तो यहां इनकी भतीजी की तबियत बिगड़ी जा रही थी ,मेरा छोटा तो एक पल भी अपनी बहन को नहीं छोड़ता है हमेशा उसी के पास रहता है। कुछ भी कहें कितने भी आधुनिक हो जाएं हम पर बिमारी के आगे हार जाते हैं।
दूसरा डर था कि कहीं इनको मेरे मायके में कोई दिक्कत तो नहीं हो रही,रहने खाने किसी भी चीज में, और कहीं वहां इनके कारण किसी को कोई परेशानी तो नहीं हो रही। पर मेरा डर व्यर्थ था ,ये बहुत खुश थे और वहां भी इनके अचानक आ जाने के कारण मम्मी भाई भतीजी सब बहुत खुश थे। बिटिया भी फरवरी के अंत तक ठीक हो गई।माता रानी की कृपा से ये जिस काम से गए थे अपने दांतों के ट्रीटमेंट के लिए .. सब ठीक रहा।
फरवरी यानि बसन्त .. वो प्यार का महीना, और इनके बिना। फोन पर रोज बात हुआ करती थी जितनी यहां रहकर भी नहीं होती। मुश्किल थे वो दिन पर बीत गए। वैसे मुझे लगता है कि रिश्तों में नजदीकी और प्यार बनाऐ रखने के लिए थोड़ी दूरी कभी कभार जरूरी है।
अच्छा तो ये थी मेरी फरवरी 2021 की यादें...
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कविता झा'काव्या कवि'
#डायरी लेखन प्रतियोगिता
#लेखनी
🤫
20-Dec-2021 08:28 PM
शानदार डायरी लेखन माम...
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Kavita Jha
20-Dec-2021 10:23 PM
आभार 😊🙏
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